बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 39)
बिल्लेसुर ने कहा, "नाम के लिये दुनिया मरती है। इतनी मिहनत हम क्यों करते हैं? नाम ही नहीं तो कुछ नहीं। हमारे बाप मरकर भी नहीं मरे, क्यों? और अगर उनके पोता न रहा तो?"
त्रिलोचन ने कहा, "तुम्हारे जैसा समझदार लड़का जिनके है––"उनके पोता कैसे न रहेगा?" कहकर त्रिलोचन गम्भीर हो गये।
बिल्लेसुर ने कहा, "मा-बाप ही दुनिया के देवता हैं। धर्म तो रहा ही न होता अगर माँ-बाप न रहे होते।"
त्रिलोचन ने कहा, "वेशक! धर्म की रक्षा हर एक को करनी चाहिये। तभी दो धर्म के पीछे जान दे देने के लिये कहा है।"
"अब देखो, खेत में काम करने गये, घर आये, औरत नहीं; बिना औरत के भोजन विधि-समेत नहीं पकता, न जल्दी में नहाते बनता है, न रोटी बनाते, न खाते; धर्म कहाँ रहा?" बिल्लेसुर उत्तेजित होकर बोले।
"हम तो बहुत पहले समझ चुके थे, अब तुम्हीं समझो।" कहकर त्रिलोचन ने तीसरी आँख पर मन को चढ़ाया।
बिल्लेसुर ने एक दफ़ा त्रिलोचन को देखा, फिर सोचने लगे, "देखो, दलाल बनकर आया है।
सोचता है, दुनिया में हम ही चालाक है। अभी रुपए का सवाल पेश करेगा। पता नहीं, किसकी लड़की है, कौन है? ज़रूर कुछ दाग होगा।
अड़चन यह है कि निबाह नहीं होता। भूख लगती है, इसलिए खाना पड़ता है। पानी बरसता है, धूप होती है, लू चलती है इसलिये मकान में रहना पड़ता है।
मकान की रखवाली के लिए ब्याह करना पड़ता है। मकान का काम स्त्री ही आकर सँभालती है।
लोग तरह-तरह की चीज़-वस्तुओं से घर भर देते हैं; स्त्री को ज़ेवर गहने बनवाते हैं। यों सब झोल है––ढोल में सब पोल ही पोल तो है?"
बिल्लेसुर को गुरुआईन की याद आई, गाँव के घर-घर का सुना इतिहास आँख के सामने घूम गया।
अब तक वे झूठ कहते रहे। यही कारण है कि बुलबुल काँपे में फँसता है। त्रिलोचन के ज्ञान में रहने की प्रतिक्रिया बिल्लेसुर में हुई।
फिर यह सोचकर कि अपना क्या बिगड़ता है,––इसका मतलब मालूम कर लेना चाहिये, करुण स्वर से बोले, "हाँ भय्या, समझदार तुमको गाँव के सभी मानते हैं।"